मेरा नाम रानी है, उम्र 28 साल। मैं एक छोटे से गांव में रहती हूं, जहां जिंदगी की रफ्तार धीमी है, लेकिन दिल की धड़कनें कभी-कभी तेज हो जाती हैं। मेरी शादी राजेश से तीन साल पहले हुई थी। राजेश एक अच्छा इंसान है, लेकिन वो शहर में नौकरी करता है, इसलिए महीने में मुश्किल से दो-तीन दिन घर आता है। घर में मैं अकेली रहती हूं अपने ससुर जी के साथ। सासु मां का देहांत दो साल पहले हो गया था, इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी मुझ पर है—खाना बनाना, सफाई करना, और ससुर जी की देखभाल। ससुर जी की उम्र 55 के करीब होगी, लेकिन उनका बदन अभी भी मजबूत है। लंबा कद, चौड़ी छाती, और वो गांव की मेहनत से बने हुए हैं। उनकी आंखों में हमेशा एक गहराई रहती है, जो मुझे कभी-कभी असहज कर देती है। लेकिन मैं कभी सोचती नहीं थी कि वो गहराई मेरी जिंदगी को इस कदर बदल देगी।
पिछले कुछ महीनों से घर में एक अजीब सा तनाव था। राजेश और मैं बच्चे की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कुछ नहीं हो रहा था। डॉक्टर ने चेकअप किया, और पता चला कि समस्या राजेश में है—उसकी स्पर्म काउंट कम है। लेकिन ससुर जी को ये बात पसंद नहीं आई। वो पुराने जमाने के आदमी हैं, खानदान का नाम चलाना उनके लिए सबसे जरूरी है। “बहू, घर में बेटा होना चाहिए,” वो अक्सर कहते। मैं चुप रहती, लेकिन अंदर से उदास हो जाती। राजेश भी परेशान था, लेकिन वो कहता, “समय लगेगा, रानी।”
कल रात की बात है। बाहर बारिश हो रही थी, हल्की-हल्की, जो मौसम को और मादक बना रही थी। मैंने डिनर बनाया—रोटी, सब्जी, और ससुर जी की पसंदीदा दाल। हम दोनों ने साथ खाया। खाने के दौरान ससुर जी की नजरें मुझ पर टिकी हुई थीं। मैंने अपनी साड़ी पहनी हुई थी, लाल रंग की, जो मेरी गोरी त्वचा पर खूब जंच रही थी। मेरी चूचियां साड़ी के नीचे से उभरी हुई थीं, और ससुर जी की नजरें बार-बार वहां जा रही थीं। मैं शर्मा गई, लेकिन कुछ कहा नहीं। डिनर के बाद मैं बर्तन साफ करने लगी, लेकिन ससुर जी ने कहा, “बहू, छोड़ो ये। मेरे कमरे में आओ, बात करनी है।”
मैं उनके कमरे में गई। कमरा साधारण था—एक बड़ा बिस्तर, अलमारी, और दीवार पर परिवार की पुरानी तस्वीरें। ससुर जी बिस्तर पर बैठे थे, उनका कुर्ता-पजामा पहना हुआ। मैं उनके पास कुर्सी पर बैठ गई। “क्या बात है, ससुर जी?” मैंने पूछा। वो गंभीर होकर बोले, “बहू, मैंने डॉक्टर से बात की। समस्या राजेश में है, लेकिन खानदान का नाम नहीं रुकना चाहिए। मैं चाहता हूं कि तुम्हें बेटा हो। मैं तुम्हें वो दे सकता हूं।” उनकी बात सुनकर मेरी सांसें थम गईं। “ससुर जी, ये आप क्या कह रहे हैं? राजेश…” मैंने कहा, लेकिन वो बीच में ही बोले, “राजेश को पता नहीं चलेगा। ये हमारे बीच रहेगा। बहू, तुम्हारी जवान देह बर्बाद नहीं होनी चाहिए।”
मैं उठने लगी, लेकिन उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया। उनकी पकड़ मजबूत थी, और उनकी आंखों में वासना की चमक साफ दिख रही थी। “ससुर जी, छोड़िए,” मैंने कहा, लेकिन मेरी आवाज कमजोर थी। शायद अंदर से मैं भी थक चुकी थी इस इंतजार से, इस अकेलेपन से। ससुर जी ने मुझे अपनी ओर खींचा और बिस्तर पर गिरा लिया। मैं उनके नीचे थी, और उनका बदन मेरे ऊपर। उनकी सांसें मेरे चेहरे पर लग रही थीं, गर्म और भारी। “बहू, आज रात से शुरू करते हैं,” उन्होंने कहा, और मेरे होठों पर अपने होठ रख दिए।
उनका चुंबन गहरा था, भूखा। उनकी जीभ मेरे होठों को चाट रही थी, और मैं विरोध करते-करते भी पिघलने लगी। उनके हाथ मेरी साड़ी के पल्लू पर गए, और उसे सरका दिया। मेरी ब्लाउज दिखने लगी, जो मेरी भरी हुई चूचियों को मुश्किल से समेटे हुए थी। ससुर जी ने ब्लाउज के हुक खोले, और मेरी चूचियां बाहर आ गईं—गोरी, भरी हुई, और निप्पल गुलाबी और सख्त। “वाह बहू, ये तो दूध की नदियां हैं,” उन्होंने कहा, और एक चूची को मुंह में ले लिया। उनकी जीभ मेरे निप्पल पर घूम रही थी, चूस रही थी, काट रही थी। मैं सिसकियां लेने लगी, “आह… ससुर जी… उफ्फ… धीरे…” लेकिन वो नहीं रुके। उनका दूसरा हाथ मेरी दूसरी चूची को मसल रहा था, निप्पल को मरोड़ रहा था। दर्द और सुख का मिश्रण मुझे पागल कर रहा था।
ससुर जी ने मेरी साड़ी पूरी तरह खोल दी। मैं अब सिर्फ पेटीकोट में थी, जो मेरी जांघों तक सरक गया था। उनकी नजर मेरी चूत पर गई, जो पैंटी के नीचे से उभरी हुई थी। उन्होंने पेटीकोट का नाड़ा खोला, और उसे नीचे सरका दिया। अब मैं पूरी नंगी थी—मेरी चूत साफ, चिकनी, और पहले से गीली। ससुर जी बोले, “बहू, तुम्हारी चूत कितनी रसीली है। जैसे शहद टपक रहा हो।” उन्होंने अपनी उंगलियां मेरी चूत पर रखीं, क्लिट को सहलाया। मैं तड़प उठी, “ओह… ससुर जी… वहां… आह…” उनकी एक उंगली मेरी चूत में घुस गई, और वो अंदर-बाहर करने लगे। मैं अपनी गांड उठा-उठा कर साथ दे रही थी, मेरी सिसकियां कमरे में गूंज रही थीं।
अब ससुर जी ने अपना कुर्ता उतारा। उनकी छाती चौड़ी थी, बालों से भरी। फिर पजामा उतारा, और उनका लंड बाहर आ गया—लंबा, मोटा, काला, और पूरी तरह तना हुआ। नसें उभरी हुई थीं, और टोपा लाल हो रहा था। मैंने देखा और शर्मा गई, लेकिन उत्सुकता से बोली, “ससुर जी, ये तो बहुत बड़ा है… राजेश का इतना नहीं…” वो हंसते हुए बोले, “बहू, ये तुम्हें बेटा देगा। चूसो इसे।” उन्होंने अपना लंड मेरे मुंह के पास लाया। मैंने हिचकिचाते हुए उसे हाथ में लिया, सहलाया। वो गर्म था, धड़क रहा था। फिर मैंने मुंह में ले लिया, चूसने लगी। ससुर जी की आह निकली, “आह बहू… अच्छा चूस रही हो… जीभ घुमाओ…” मैंने जीभ से उनके लंड के टोपे को चाटा, पूरे लंड को मुंह में लिया। वो मेरे बाल पकड़कर धक्के देने लगे, जैसे मुंह चोद रहे हों।
कुछ देर बाद वो रुके और बोले, “अब असली खेल शुरू।” उन्होंने मुझे लिटाया, मेरी टांगें फैलाईं, और अपना लंड मेरी चूत के मुंह पर रखा। “बहू, तैयार हो?” उन्होंने पूछा। मैंने हां में सिर हिलाया। फिर एक झटके में उन्होंने आधा लंड अंदर धकेल दिया। मैं चिल्लाई, “आह… मां… ससुर जी… फट जाएगी…” लेकिन दर्द के साथ सुख भी था। वो धीरे-धीरे पूरा लंड अंदर कर गए, और धक्के मारने लगे। हर धक्के के साथ उनका लंड मेरी चूत की गहराई छू रहा था। मैं सिसकियां ले रही थी, “ओह… चोदो ससुर जी… जोर से… बेटा दो मुझे…” मेरी चूचियां उछल रही थीं, और ससुर जी उन्हें दबाते हुए चोद रहे थे।
फिर उन्होंने मुझे घोड़ी बनाया। मैं घुटनों के बल हो गई, गांड ऊपर करके। ससुर जी पीछे से आए, अपना लंड मेरी चूत में डाला, और जोर-जोर से धक्के मारने लगे। उनका हाथ मेरी गांड पर था, थप्पड़ मारते हुए। “बहू, तुम्हारी गांड कितनी मोटी और रसीली है… अगली बार इसे भी चोदूंगा,” उन्होंने कहा। उनकी एक उंगली मेरी गांड के छेद में घुसी, और मैं तड़प उठी। चुदाई की रफ्तार तेज हो गई। कमरे में चप-चप की आवाज, मेरी सिसकियां, और ससुर जी की आहें गूंज रही थीं। मैं महसूस कर रही थी कि मेरा पानी निकलने वाला है। “ससुर जी… मैं झड़ रही हूं… आह…” मैं चिल्लाई। वो बोले, “झड़ जा बहू… मैं भी डाल रहा हूं अपना बीज…” और एक जोरदार धक्के के साथ उन्होंने अपना गर्म रस मेरी चूत में छोड़ दिया। वो रस मेरी चूत को भर रहा था, टपक रहा था। मैं भी झड़ गई, मेरी टांगें कांप रही थीं।
हम दोनों थककर लेट गए। ससुर जी ने मुझे अपनी छाती से लगा लिया, मेरी चूचियां उनकी छाती से दबी हुई थीं। “बहू, ये रोज करेंगे। बेटा जरूर होगा,” उन्होंने कहा। मैं मुस्कुराई, थकान से भरी लेकिन खुश। वो रात लंबी थी—हमने दो बार और चुदाई की। दूसरी बार ससुर जी ने मुझे ऊपर बिठाया, और मैं उनके लंड पर उछलती रही। तीसरी बार सुबह के समय, जब बारिश रुक गई थी। अब मैं इंतजार कर रही हूं कि कब वो बीज फल देगा। ससुर जी की चुदाई ने मुझे नई जिंदगी दी है।