भाई, मेरा नाम राजू है। 28 साल का हूँ, और साल में दो बार गाँव जाता हूँ – एक होली पर, दूसरा दिवाली पर। शहर की चकाचौंध में जॉब करता हूँ, लेकिन गाँव की मिट्टी की खुशबू कुछ और ही है। इस बार दिवाली पर गया, तो सोचा था बस परिवार से मिलूँगा, पटाखे फोड़ूँगा, और वापस लौट आऊँगा। लेकिन किस्मत ने कुछ और ही लिखा था। गाँव की वो लड़की, मीरा – 22 साल की, मस्त माल, साँवली रंगत, लेकिन आँखें काली-काली, बाल लहराते हुए, और फिगर ऐसा कि साड़ी में लपेटकर भी सब कुछ बता दे। मीरा हमारे पड़ोस की थी, बचपन से जानता था, लेकिन अब बड़ी हो गई थी – चूचियाँ भरी हुईं, कमर पतली, गांड गोल। वो गाँव के स्कूल में पढ़ाती थी, लेकिन रातें अकेली काटती। दिवाली की वो रात… उफ्फ, आज भी याद आती है। मीरा को चोदा मैंने, घर के आँगन में, पटाखों की आवाज़ में, वो चुदाई जो जिंदगी भर की याद बन गई। ये मेरी वो सच्ची-सी कहानी है, गाँव की देसी महक वाली, बिना किसी बनावटी मसाले के। भावनाएँ हैं, गर्माहट है, और वो जंगलीपन जो सिर्फ गाँव की रातों में ही मिलता है।
दिवाली की शाम थी। गाँव में लाइट्स लगी हुईं, घर-घर दीये जल रहे थे। मैं मम्मी के साथ मिठाई बाँट रहा था, तभी मीरा आई। लाल साड़ी में, चूड़ियाँ खनक रही थीं, काजल लगाए आँखें चमक रही। “राजू भैया, दिवाली मुबारक!” वो मुस्कुराई। मैंने भी मुस्कुराया, लेकिन नजर उसके कंधे पर साड़ी के पल्लू पर अटक गई। “मीरा, तू तो आज रानी लग रही है।” वो शरमाई, “भैया, शहर जाकर भूल गए हो गाँव को।” बातें हुईं – स्कूल की, जॉब की। लेकिन उसकी आँखों में कुछ था, जैसे बुलावा। रात को पटाखे फूटे, गाना-बजाना हुआ। मीरा भी आई, नाच रही थी। उसकी कमर घूम रही, साड़ी लहरा रही। मेरा दिल धड़कने लगा। सोचा, बस एक बार छू लूँ। लेकिन रात गहरी हो गई।
रात के 12 बजे, सब सो गए। मैं बाहर आँगन में सिगरेट पी रहा था। तभी मीरा की आवाज़ आई, “भैया, नींद नहीं आ रही। थोड़ी बात कर लूँ?” वो आँगन में आ गई, साड़ी अभी भी लाल, लेकिन पल्लू ढीला। हम आँगन की चौकी पर बैठे। चाँदनी रात, दूर पटाखों की आवाज़। “मीरा, गाँव में अकेली रहती है ना? कोई लड़का-वड़का?” मैंने पूछा। वो हँसी, “भैया, गाँव में कौन देखता है। शहर वाले तो बस आते-जाते हैं।” उसका हाथ मेरे हाथ से टच हो गया। करंट दौड़ा। “मीरा, तू जानती है, तुझे देखकर…” मैं रुका। वो बोली, “क्या भैया? बोल ना।” मैंने हिम्मत की, उसका हाथ पकड़ा। “तू बहुत सुंदर है। रातों को सोचता हूँ तुझे।” मीरा शरमाई, लेकिन हाथ नहीं छुड़ाया। “भैया, ये गलत है। लेकिन… मैं भी सोचती हूँ। शहर की लड़कियाँ जैसी नहीं हूँ, लेकिन मन तो करता है।”
वो पल रुक गया। मैंने उसे करीब खींच लिया। होंठ उसके होंठों पर। मीरा सिहर गई, लेकिन चूमने लगी। किस गहरा हो गया – जीभ अंदर, साँसें मिलीं। मेरा हाथ उसकी कमर पर। “मीरा… तू आग है।” वो बोली, “भैया, आज दिवाली है… रंग भर दो मेरी जिंदगी में।” आँगन में, दीयों की रोशनी में, मैंने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। ब्लाउज के हुक खोले। चूचियाँ बाहर – भरी हुईं, निप्पल काले-काले। “मीरा, तेरी चूचियाँ… उफ्फ।” मुँह में लिया, चूसने लगा। जीभ से निप्पल घुमाया, दांत से काटा। मीरा सिसकारी, “आह… भैया… चूस… जोर से… मेरी चूचियाँ दबा…” मैंने दोनों दबाईं, मसलीं, चूसीं। वो मेरे सिर को दबा रही थी, कमर हिल रही। “हाय… कितना अच्छा… गाँव में ऐसा कोई नहीं…”
मेरा हाथ नीचे गया। साड़ी ऊपर की। पेटीकोट के नीचे, पैंटी गीली। “मीरा, तेरी चूत… रस टपक रहा।” उंगली रगड़ी। मीरा सिहर गई, “भैया… छू… प्यार से।” मैंने पैंटी साइड की, चूत पर जीभ लगाई। क्लिट चूसा, जीभ अंदर। “आह… भैया… चाट… मेरी चूत चाट… जीभ से चोद…” मैंने दो उंगलियाँ डालीं, क्लिट चूसते हुए चोदा। मीरा कमर उछालने लगी, “उफ्फ… मैं झड़ रही… रस पी ले भैया…” रस निकला, गर्म, देसी स्वाद। मैंने चाट लिया।
“अब तेरा…” मीरा बोली। मेरी शर्ट उतारी, पैंट खोली। लंड बाहर – मोटा, खड़ा। “भैया, तेरा लंड… कितना बड़ा!” हाथ में लिया, सहलाया। मुँह में डाला, चूसने लगी। जीभ से सुपारा चाटा, गले तक। “मीरा… चूस… रंडी जैसी…” मैं बाल पकड़ रहा था। वो थूक से गीला करके चूस रही, बॉल्स चाटी। “तेरा लंड… गाँव की लड़की का सपना।”
मैंने मीरा को चौकी पर लिटाया। साड़ी ऊपर, पैर फैलाए। चूत खुली, गीली। लंड रगड़ा। “मीरा, तैयार?” वो बोली, “हाँ भैया… चोद… मेरी चूत फाड़ दे।” सुपारा अंदर। “आआआ… भैया… मोटा है…” पूरा घुसाया। चूत टाइट, गर्म। धक्के शुरू – थप-थप, पटाखों की आवाज़ में। चूचियाँ उछल रही, मैं दबा रहा। मीरा चिल्लाई, “जोर से… चोद भैया… तेरी गाँव की रंडी हूँ… फाड़ चूत…”
डॉगी में बदला। मीरा घुटनों पर, गांड ऊपर। “क्या गांड है मीरा!” पीछे से घुसाया। कमर पकड़ी, धक्के। “हाय… पीछे से… बाल खींच…” थप्पड़ मारा। “गांड मारूँ?” “हाँ… गांड चोद…” लंड निकाला, थूक लगाया, गांड में। “आह… दर्द… चोद…” पूरा घुसाया, चोदा। टाइट गांड निचोड़ रही। “उफ्फ… तेरी गांड स्वर्ग…” उंगली चूत में। मीरा झड़ी।
काउगर्ल। मीरा ऊपर, लंड चूत में। उछली। “अब मैं चोदूँगी भैया।” चूचियाँ चूसीं मैं। रिवर्स – गांड दिखी, दबाई। 69 – चूत चाटी, लंड चूसा। मिशनरी – धक्के। “झड़ने वाला हूँ।” “अंदर… चूत में…” झड़ गया। मीरा भी।
रात भर चुदाई। आँगन में, फिर कमरे में। सुबह मीरा बोली, “भैया, दिवाली का तोहफा मिल गया।” अब हर दिवाली पर मिलते हैं। मस्त गाँव की लड़की की चुदाई – जिंदगी का सबसे हॉट तोहफा।