भाई, मेरा नाम राहुल है। असली वाला, जो रोज़ सुबह उठकर कॉलेज जाता है, शाम को दोस्तों के साथ बियर पीता है, और रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे लंड हिलाता है। हमारा घर छोटा सा है, इलाहाबाद जैसे शहर में, जहाँ गलियाँ तंग हैं और सीक्रेट्स भी। पापा रिटायर्ड टीचर, मम्मी घर संभालतीं, बड़ा भाई अजय – वो तो हमेशा से मेरा बॉस रहा। इंजीनियरिंग की, अच्छी जॉब पकड़ी, और दो साल पहले शादी कर ली नेहा से। नेहा भाभी… अरे यार, वो तो चूत की मलिका है। पहली नज़र में ही दिल धक् से हो गया था। शादी के मंडप में साड़ी में लिपटी, कमर पतली, गांड ऐसी कि पकड़ लो तो निचोड़ दो, और चुचियाँ – भगवान, 34B होंगी लेकिन इतनी सख्त और ऊपर की, जैसे चूसने को आमंत्रित कर रही हों। चेहरा? वो तो कातिल। बड़ी-बड़ी आँखें, होंठ गुलाबी, और मुस्कान में वो शरारत जो सीधा लंड खड़ा कर दे।
शादी के बाद घर में जैसे खुशबू बिखर गई। भाभी सुबह उठतीं, किचन में घुसतीं, साड़ी का पल्लू सरक जाता तो पीठ की चमक… मैं चुपके से देखता। भैया रात को उनके कमरे में जाते, दीवार पतली थी यार। सुनाई देता सब – भाभी की सिसकारियाँ, “आह अजय, तेरी चुदाई अच्छी है, लेकिन और जोर से… मेरी चूत फाड़ दे!” भैया का हाँफना, बेड की चर्र-चर्र। मैं बगल के कमरे में लेटा, लंड पकड़कर हिलाता। कल्पना करता, अगर मैं होता तो कैसे चोदता। नेहा भाभी, मेरी रंडी बन जाती। लेकिन ये तो बस सपना था। या था?
पहली बार हुआ बारिश के उस कायरपन भरे दिन। जुलाई का महीना, आकाश फट पड़ा। भैया को मीटिंग थी, रात नौ बजे तक लेट। मैं कॉलेज से लौटा, घर में सन्नाटा। भाभी बालकनी में खड़ीं, साड़ी भीगकर चिपक गई। ब्लाउज़ के नीचे निप्पल साफ दिख रहे, काले ब्रा के साथ। कमर पर पानी की बूँदें लुढ़क रही। “भाभी, अंदर आ जाओ, बीमार पड़ जाओगी,” मैंने कहा, लेकिन आवाज़ काँप गई। वो मुड़ीं, बाल भीगे, चिपके हुए चेहरे पर। “राहुल बाबू, बारिश तो दिल की गर्मी बुझाती है। तू भी आ न, साथ में गिला हो जा।” यार, उसकी आँखों में वो चमक… जैसे कह रही हो, ‘चोद दे मुझे।’ मैं हिचकिचाया, लेकिन पैर खुद चले। बालकनी में घुसा, ठंडी हवा लगी, लेकिन मेरी बॉडी गर्म।
वो करीब आईं, कंधा छुआ मेरा। “तेरा भाई तो हमेशा व्यस्त रहता है। तू तो फ्री लगता है।” हाथ बढ़ाया, मेरी कमीज पकड़ी। मैंने हिम्मत की, कमर पर हाथ रखा। नरम, गर्म। “भाभी, ये…” शब्द अटके। वो हँसीं, होंठ मेरे कान पर। “शशश… चुप। बस महसूस कर।” साड़ी का पल्लू सरका, कंधा नंगा। मैंने चूमा वहाँ, हल्के से। वो सिहर गईं। “आह राहुल… तेरी जीभ ठंडी है।” मेरा लंड पैंट में तन गया, 6.5 इंच का, मोटा। मैंने उन्हें दीवार से सटा दिया। साड़ी ऊपर सरकाई, पेट पर किस किया। नाभि में जीभ डाली। वो हाँफने लगीं, “राहुल, तेरी भाभी की चूत गीली हो रही है।” पैंटी उतारी, उँगली चूत पर। रस टपक रहा, गर्म, चिपचिपा। “भाभी, कितनी हॉट है तू।” दो उँगलियाँ अंदर, क्लिट रगड़ा। वो चीखीं, “हाँ, उँगली चोदो, लेकिन लंड दो।”
मैंने जींस खोली, लंड बाहर। वो घुटनों पर, मुंह में लिया। चूसा जैसे आइसक्रीम। जीभ सर्कुलर मोशन में, गले तक। सलाइवा टपक रहा मेरी जांघों पर। “मम्म… राहुल का लंड स्वादिष्ट, नमकीन।” मैंने बाल पकड़े, मुंह चोदा। धक्के मारे, गला भर गया। आँसू आ गए उसके आँखों में, लेकिन मुस्कुरा रही। फिर खड़ी हुई, झुकी। “पीछे से चोद, डॉगी स्टाइल।” मैंने लंड चूत पर रगड़ा, फिर धक्का। अंदर गया पूरा, टाइट चूत ने जकड़ लिया। “आह्ह्ह! फाड़ दिया तूने!” मैंने स्पीड पकड़ी, कमर पकड़कर पेला। थप्पड़ मारे गांड पर, लाल हो गई। चुचियाँ पीछे से दबाईं, निप्पल खींचे। बारिश की आवाज़ में हमारी चुदाई – प्लच प्लच, सिसकारियाँ। “जोर से चोदो राहुल, तेरी भाभी रंडी है तेरी!” मैंने बाल खींचे, स्पैंक किया। आखिर में झड़ गया अंदर, गर्म वीर्य भर दिया। वो भी काँपी, ऑर्गेज्म से चूत सिकुड़ गई। हम गिर पड़े, भीगे हुए। “ये राज़ रहेगा,” वो बोलीं, चूमते हुए।
उस रात से जैसे जहर घुल गया खून में। रोज़ का इंतज़ार। सुबह मम्मी-पापा बाज़ार जाते, भैया ऑफिस। किचन में भाभी अकेली। मैं घुसता, पीछे से गले लगाता। लंड गांड पर रगड़ता। “भाभी, कल रात सपना आया तेरा।” वो हँसतीं, “क्या किया सपने में?” साड़ी ऊपर, पैंटी नीचे। उँगली चूत में डालता, चाटता। “चूसा तेरी चूत को।” वो मोड़तीं, काउंटर पर टेक लगातीं। लंड अंदर। क्विक चुदाई, 10 मिनट। “आह, तेरी स्पीड अच्छी है। भैया तो धीमा है।” झाड़ता चूत में ही, बहता बाहर। साफ करतीं, चूमतीं। “शाम को पार्क में मिल।”
पार्क वाली शामें तो यादगार। वो बगीचा, जहाँ पेड़ घने। बेंच पर बैठते, बातें। लेकिन 5 मिनट में हाथ उनके जांघों पर। साड़ी ऊपर, चूत सहलाता। “भाभी, तेरी चूत बालों वाली है, सॉफ्ट।” वो मेरे लंड पर हाथ रखतीं, मसलतीं। “खोल, चूसूँगी।” झाड़ियाँ ढकतीं, वो झुकतीं, ब्लोजॉब। गहराई से चूसतीं, बॉल्स चाटतीं। मैं उँगलियाँ चूत में, जी-स्पॉट हिट। वो सिसकतीं, “राहुल, तेरी उँगलियाँ जादू हैं।” फिर खड़ी, पेड़ से सटी। मैं पीछे से चोदता, गांड थपथपाता। कभी-कभी एनल ट्राई किया। पहली बार दर्द हुआ, तेल लगाया। “आह, गांड में तेरी पहली चुदाई। धीरे।” टाइट था, लेकिन मजा आया। “भाभी, तेरी गांड चूत से भी टाइट।” स्पीड बढ़ाई, झाड़ा अंदर। रात को घर लौटते, नज़रें मिलतीं – वो आग।
एक हफ्ते बाद, भैया का ट्रिप। दिल्ली, तीन दिन। घर हमारा। पहली रात, डिनर बनाया भाभी ने। लाल साड़ी, लो ब्लाउज़। चुचियाँ आधी बाहर। खाते-खाते पैर उनके मेरी जांघ पर। “राहुल, आज फुल नाइट।” बत्तियाँ बुझीं, लिविंग रूम में। मैट बिछाया, कंबल। नंगी हो गईं। बॉडी परफेक्ट – कमर पतली, पेट फ्लैट, चूत गुलाबी। मैंने चुचियाँ चूसी, काटी। दांत गड़े, निशान पड़े। “आह, मार्क कर दो, अपना ब्रांड।” 69 में गए। मैं चूत चाटा, क्लिट चूसा, रस पिया। वो लंड गले तक, गैगिंग। “फक माय माउथ!” फिर मिशनरी। लंड चूत में, धीरे-धीरे। आँखों में देखा, चूमा। “प्यार करता हूँ तुझसे, भाभी।” वो बोलीं, “चोदो मुझे, प्यार चुदाई में है।” जोर-जोर धक्के, बेड… मतलब मैट हिला। पोज़िशन्स बदले – काउगर्ल, वो ऊपर उछली, चुचियाँ मेरे मुंह में। “हाँ, चूसो!” डॉगी में गांड चोदी, उँगली चूत में। डबल। वो चिल्लाई, “कमिंग… झड़ रही हूँ!” मैंने भी झाड़ा, चूत भर। रात भर चुदाई, ब्रेक में चाय पी, फिर फिर। सुबह थकान, लेकिन संतुष्ट।
दूसरी रात और वाइल्ड। शावर में चुदाई। पानी के नीचे, साबुन लगाया। चुचियाँ स्लिपरी, चूत गीली। लंड अंदर, वॉल से सटाकर। “स्लिपरी चुदाई मजा है।” तीसरी रात, रोल प्ले। वो नर्स बनीं, मैं पेशेंट। “डॉक्टर साहब, मेरी चूत दर्द कर रही।” मैंने ‘इलाज’ किया – लंड इंजेक्शन। हँसी, चुदाई, सब मिक्स। भैया लौटे, तो चुपके। रात को, जब भैया सो जाते, भाभी चुपके मेरे कमरे। क्विक्स – मुंह में झाड़ना, या चूत में उँगली। एक बार रिस्क लिया, भैया के बगल कमरे में। दरवाज़ा खुला, लेकिन अंधेरा। वो मेरे ऊपर, राइडिंग। सिसकारियाँ दबी, हाथ मुंह पर। “शश… चोद रुको मत।” टाइट कंट्रोल, लेकिन झड़े दोनों।
लेकिन यार, अच्छे दिन ज्यादा नहीं चलते। एक महीना बीता, भाभी बदल गईं। उदास। एक शाम पूछा, “क्या हुआ?” वो रो पड़ीं। “राहुल, प्रेग्नेंट हूँ। लेकिन… टेस्ट में शक। भैया का या तेरा?” दिल बैठ गया। “भाभी, क्या करें?” डॉक्टर के पास गए चुपके। कन्फर्म – मेरा। भैया को शक न हो, इसलिए फैसला लिया – मुंबई जाना। नौकरी का बहाना। जाते वक्त आखिरी चुदाई। होटल में, चेकआउट से पहले। “ये आखिरी बार।” रोते हुए चूमा, चोदा। चूत में झाड़ा, जैसे विदा। “भूलना मत मुझे।”
अब साल भर हो गया। भाभी मुंबई में, बच्चा पैदा हुआ – मेरा बेटा। फोटो भेजतीं व्हाट्सएप पर। भैया खुश, लेकिन मैं? रातों को लंड हिलाता, उनकी चूत की याद में। कभी कॉल पर बातें – “राहुल, तेरी चुदाई मिस करती हूँ।” लेकिन मिल न सकें। अधूरा प्यार, अधूरी चुदाई। लेकिन यार, वो यादें… वो स्पर्श, वो रस, वो सिसकारियाँ। ज़िंदगी भर का माल। अगर कभी मिले, तो फिर से चोदूँगा, पूरी रात। भाभी, मेरी नेहा, तू हमेशा मेरी रंडी रहेगी।
(अगर और चैप्टर चाहिए, तो बता भाई। असली स्टोरी है ये, मेरी डायरी से।)